पेरासिटामोल सहित 50 दवाएं, जिन्हें भारतीय अच्छी दवाई समज के खाते हैं, मेडिकल टेस्ट में Fail हो गईं

भारत के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (CDSCO) ने अगस्त 2024 में एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में देशभर में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली कई महत्वपूर्ण दवाएं क्वालिटी टेस्ट में फेल पाई गईं।

इन दवाओं में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, एसिड रिफ्लक्स, विटामिन और कैल्शियम सप्लीमेंट्स और बच्चों को दी जाने वाली एंटीबायोटिक्स शामिल हैं, जो बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज के लिए दी जाती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, इन दवाओं को NSQ (Not of Standard Quality) घोषित किया गया है, जो बताता है कि दवाएं क्वालिटी के मानकों के अनुरूप नहीं हैं या उनमें कोई निर्धारित गुणवत्ता नहीं पाई गई।

कैल्शियम और विटामिन D-3 सप्लीमेंट्स, एंटी-डायबिटीज दवाओं और हाई ब्लड प्रेशर की दवाओं सहित 50 से अधिक दवाएं भारत के ड्रग रेगुलेटर द्वारा किए गए क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई हैं। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (CDSCO) ने अपनी हालिया मासिक दवा चेतावनी सूची में 53 दवाओं को ‘Not of Standard Quality (NSQ)’ के रूप में घोषित किया।

NSQ चेतावनियां राज्य के ड्रग अधिकारियों द्वारा किए गए रैंडम मासिक परीक्षण से सामने आईं। इन दवाओं में विटामिन-सी और डी-3 टैबलेट्स शेलकैल, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स और विटामिन-सी सॉफ्टजेल्स, एंटासिड पैन-डी, पेरासिटामोल टैबलेट्स (IP-500 मिलिग्राम), एंटी-डायबिटिक दवा ग्लिमेपीराइड, हाई ब्लड प्रेशर की दवा टेलमिसार्टन, और कई अन्य दवाएं हैं जो सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं में शामिल हैं और ड्रग रेगुलेटर के क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गईं।

इन दवाओं का उत्पादन हेटेरो ड्रग्स, एल्केम लैब, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (HAL), कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, मैग लाइफसाइंसेस, प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर और अन्य कंपनियों द्वारा किया गया है। पेट के संक्रमण के इलाज के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली मेट्रोनिडाजोल, जो HAL द्वारा बनाई गई है, भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई।

इसी तरह शेलकैल, जो उत्तराखंड स्थित प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर द्वारा निर्मित और टोरेंट फार्मास्युटिकल्स द्वारा वितरित की जाती है, भी टेस्ट में पास नहीं हो पाई। लब टेस्ट के अनुसार, हैदराबाद स्थित हेटेरो की सेपोडेम XP 50 ड्राय सस्पेंशन, जो बच्चों के बैक्टीरियल इन्फेक्शन के इलाज के लिए दी जाती है, भी हल्की गुणवत्ता वाली पाई गई।

ये दवाएं टेस्ट में फेल हुईं:

  • पेरासिटामोल टैबलेट्स (500 मिलिग्राम): हल्के बुखार और दर्द निवारक के लिए इस्तेमाल होती है और आमतौर पर हर घर में पाई जाती है।
  • ग्लिमेपीराइड: यह एक डायबिटीज विरोधी दवा है। इसका उत्पादन अल्केम हेल्थ द्वारा किया गया था।
  • टेल्मा H (Telmisartan 40 mg): ग्लेनमार्क की यह दवा हाई बीपी के इलाज के लिए दी जाती है, और यह भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई।
  • पैन D: एसिड रिफ्लक्स के इलाज के लिए दी जाने वाली यह दवा भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई। इसे अल्केम हेल्थ साइंस द्वारा बनाया गया था।
  • शेलकैल C और D3 कैल्शियम सप्लीमेंट्स: प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर द्वारा बनाई गई और टोरेंट फार्मास्युटिकल्स द्वारा वितरित की गई शेलकैल भी क्वालिटी मानकों पर खरी नहीं उतरी।
  • क्लैवम 625: यह एक एंटीबायोटिक दवा है।
  • सेपोडेम XP 50 ड्राय सस्पेंशन: बच्चों के बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज के लिए दी जाने वाली यह दवा भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई।
  • पल्मोसिल (इरेक्टाइल डिसफंक्शन के लिए): सन फार्मा द्वारा बनाई गई, यह दवा भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई।
  • पेंटोसिड (एसिड रिफ्लक्स के लिए): एसिडिटी और रिफ्लक्स के इलाज के लिए सन फार्मा की यह दवा भी असफल पाई गई।
  • अर्सोकॉल 300: सन फार्मा की यह दवा भी क्वालिटी मानकों को पूरा नहीं कर पाई।

कंपनियों का क्या कहना है:

इन दवाओं के टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद संबंधित कंपनियों ने जवाब दाखिल किए, जिसमें उन्होंने दावा किया कि रिपोर्ट में बताए गए बैच उनके द्वारा नहीं बनाए गए हैं और ये उत्पाद नकली हो सकते हैं। कंपनियों ने यह भी कहा कि वे जांच के परिणामों का इंतजार कर रहे हैं।

CDSCO का क्या कहना है:

CDSCO ने कहा कि यह रिपोर्ट नकली दवाओं के उत्पादन की जांच के परिणामों पर आधारित है। फिलहाल, रेगुलेटरी एजेंसी जांच कर रही है कि क्या ये दवाएं नकली रूप में बाजार में लाई गई हैं या मानकों का उल्लंघन करके बनाई गई हैं। इस जांच के परिणाम आने तक इन दवाओं की बिक्री पर रोक नहीं लगाई गई है, लेकिन रेगुलेटर ने संबंधित कंपनियों को आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा है।

संभावित खतरे:

गुणवत्ता मानकों में असफल दवाएं मरीजों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती हैं। नकली दवाओं का बाजार में आना न सिर्फ इलाज को प्रभावित करता है, बल्कि देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर भी बड़े सवाल खड़े करता है।

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