मनोमोहन सिंह की आखिरी इच्छा अधूरी रह गई, प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं कर सके पूरी

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में गुरुवार रात 26 दिसंबर को निधन हो गया। मनमोहन सिंह ने ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) दिल्ली में अंतिम सांस ली। AIIMS ने बताया कि मनमोहन सिंह का निधन उम्र से संबंधित बीमारियों के कारण हुआ। मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक दो बार भारत के प्रधानमंत्री रहे।

आर्थिक सुधारों के जनक
मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक सुधारों का श्रेय दिया जाता है। पूर्व वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई। आज जब मनमोहन सिंह हमारे बीच नहीं हैं, तो उनकी एक अधूरी इच्छा सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है।

जन्म और बचपन
मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था। उनका गाँव “गाह” वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में स्थित है। 2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तब पाकिस्तान में इस बात की खूब चर्चा हुई। गाह गाँव में एक सरकारी स्कूल भी है, जिसका नाम “मनमोहन सिंह सरकारी लड़कों का स्कूल” रखा गया है।

सरहद पार कर बसे अमृतसर में
मनमोहन सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इसी स्कूल में की थी। आजादी के बाद उन्होंने और उनका परिवार विभाजन की पीड़ा सहते हुए पंजाब के अमृतसर में बस गए। मनमोहन सिंह के क्लासमेट राजा मोहम्मद अली, जो गाह गाँव के निवासी हैं, के अनुसार वे दोनों चौथी कक्षा तक साथ पढ़े थे।

गांव वापस जाने की ख्वाहिश
मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहते हुए अपने गाँव गाह और वहां की स्कूल को देखने की इच्छा रखते थे। उनके गाँव में उनका पैतृक घर भी था, लेकिन वह दंगों के दौरान नष्ट हो गया।

प्रधानमंत्री रहते लिखी चिट्ठी
मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को गाँव के विकास के लिए चिट्ठी भी लिखी थी। लेकिन प्रधानमंत्री रहते हुए या बाद में भी वे अपने गाँव नहीं जा सके। उनकी यह ख्वाहिश अधूरी रह गई। सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि यह मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी अधूरी इच्छा थी।

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