पार्किंसंस (कंपवात) रोग : मरीज और परिवार के लिए चुनौती

क्या पार्किंसंस (कंपवात) एक असाध्य रोग है?
हां, यह असाध्य रोग है और लंबे समय तक मरीज और उसके परिवार को परेशान करता है। इसे “कंपवात” भी कहते हैं।

पार्किंसंस की जानकारी का इतिहास:
पार्किंसंस रोग के बारे में सबसे पहले 5000 साल पहले आयुर्वेदाचार्य चरक ने चरक संहिता में जानकारी दी थी। आयुर्वेद में इसे वायु दोष से होने वाला रोग बताया गया है। इसमें सिर, हाथ, पैर हिलने (कंपन) जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
साल 1817 में डॉ. जेम्स पार्किंसन ने इस मस्तिष्कीय रोग की विस्तृत जानकारी दी, इसलिए इसे उनके नाम पर पार्किंसंस कहा जाता है।

पार्किंसंस का कारण:
मस्तिष्क के “सबसटैंशिया नायग्रा” कोशिकाएं किसी कारण क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और “डोपामाइन” नामक रसायन बनना कम हो जाता है। जब डोपामाइन बनाने वाली 80% कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, तब पार्किंसंस के लक्षण उभरते हैं।

मुख्य लक्षण:

  1. कंपन (Tremors): आराम की स्थिति में भी हाथ-पैरों की उंगलियां लयबद्ध तरीके से हिलना।
  2. धीमी गति (Bradykinesia): सभी शारीरिक गतिविधियां धीमी होना।
  3. स्नायुओं में कठोरता (Rigidity): हाथ-पैर और चेहरे की मांसपेशियों का सख्त हो जाना।
  4. चलने में समस्या: चलने की गति धीमी हो जाना या चलते-चलते रुक जाना।
  5. मेमोरी लॉस और डिप्रेशन: याददाश्त कमजोर होना और डिप्रेशन आना।
  6. अन्य लक्षण: आवाज का धीमा और नीरस होना, चेहरे के हावभाव कम होना, लार टपकना, और आंखों की पलकें कम झपकना।

पार्किंसंस का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण:
आयुर्वेद के अनुसार, वायु दोष के बढ़ने से यह रोग होता है। वायु दोष से मस्तिष्क की नसें और कोशिकाएं सूखने लगती हैं, जिससे डोपामाइन का स्राव कम हो जाता है। इससे मरीज को याददाश्त की कमी, चिड़चिड़ापन, और आत्मनिर्भरता की कमी महसूस होती है।

आयुर्वेदिक समाधान:

  1. खानपान पर ध्यान दें:
    • वायु दोष बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे कठोर दालें, ठंडा या बासी खाना, तली चीजें, और फ्रीज का ठंडा पानी न लें।
    • सुपाच्य भोजन जैसे मूंग की दाल, लौकी, तोरई, और सहजन का सेवन करें।
    • गाय का घी, तिल का तेल, अदरक और लहसुन का प्रयोग करें।
  2. जीवनशैली सुधारें:
    • नियमित व्यायाम और योग करें।
    • चिंता और तनाव से बचें।
    • रात को जल्दी सोएं और समय पर भोजन करें।

पार्किंसंस रोग में आयुर्वेदिक उपचार और स्वस्थ जीवनशैली से रोग को नियंत्रित करना संभव है। साथ ही, परिवार के सहयोग और सही इलाज से मरीज की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।

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