निवेशक हमेशा ऐसी रणनीतियों की तलाश में रहते हैं जो उनके निवेश को बेहतर तरीके से प्रबंधित कर सके। पिछले कुछ वर्षों में मजबूत प्रदर्शन के कारण स्मार्ट बीटा या फैक्टर इन्वेस्टिंग निवेशकों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। अक्टूबर 2024 तक फैक्टर-बेस्ड फंड का AUM (एसेट्स अंडर मैनेजमेंट) अक्टूबर 2020 के ₹405 करोड़ से 88 गुना बढ़कर ₹35,782 करोड़ हो गया, ऐसा बंधन एएमसी के हेड (प्रोडक्ट्स) सिरशेंदु बसु ने बताया।
फैक्टर इन्वेस्टिंग क्या है?
फैक्टर वे पैरामीटर्स हैं जिनका उपयोग निवेश से जुड़े निर्णय लेने में किया जाता है। मुख्य फैक्टर्स में मोमेंटम/अल्फा, लो वोलैटिलिटी, क्वालिटी, वैल्यू और साइज शामिल हैं। इनमें से मोमेंटम फैक्टर निवेशकों के बीच सबसे लोकप्रिय है।
फैक्टर-बेस्ड रणनीतियां नियम-आधारित अप्रोच को अपनाती हैं, जो रिसर्च पर आधारित होती हैं और मानवीय पूर्वाग्रहों (bias) से मुक्त होती हैं। यह अधिक जोखिम के साथ उच्च रिटर्न प्रदान करती हैं। हालांकि, इनमें कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं, जैसे मार्केट में एंट्री और एग्जिट से जुड़े चुनौतियां, और किसी विशेष सेक्टर या स्टॉक पर ध्यान केंद्रित करने से जुड़े जोखिम।
मल्टी फैक्टर स्ट्रेटेजी की विशेषताएं
मार्केट की विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार फैक्टर्स का डाइवर्सिफिकेशन (विविधीकरण) इस रणनीति में केंद्रित जोखिम को कम करता है और पोर्टफोलियो को स्थिर बनाता है। मल्टी फैक्टर अप्रोच में शामिल मुख्य फैक्टर्स हैं: वैल्यू, मोमेंटम, क्वालिटी, लो वोलैटिलिटी, और अल्फा।
अल्फा + लो वोलैटिलिटी: कम जोखिम, अधिक रिटर्न
निवेशक कम वोलैटिलिटी के साथ मार्केट से बेहतर रिटर्न प्राप्त करना चाहते हैं। अल्फा + लो वोलैटिलिटी रणनीति विशेष रूप से कम वोलैटिलिटी के साथ उच्च रिटर्न देने के लिए बनाई गई है। यह रणनीति निवेशकों को अपने लक्ष्य हासिल करने में मदद करती है।
निफ्टी अल्फा लो वोलैटिलिटी 30 इंडेक्स
यह एक मल्टी फैक्टर स्ट्रेटेजी का उदाहरण है, जिसमें पोर्टफोलियो का निर्माण कम वोलैटिलिटी और अधिक रिटर्न के उद्देश्य से किया गया है।