सृष्टि संस्था हर साल गर्मी और सर्दी के मौसम में परंपरागत ज्ञान और नवाचार करने वाले लोगों की खोज व सम्मान के लिए पैदल खोज यात्रा का आयोजन करती है। अब तक गुजरात सहित देश के विभिन्न राज्यों में 50 खोज यात्राएं आयोजित हो चुकी हैं।
51वीं खोज यात्रा राजस्थान के नागौर जिले में हरिमा से चकधाणी तक 17 से 23 जून के दौरान आयोजित की गई थी। कुल 92 किलोमीटर से अधिक की इस पदयात्रा में 10 गाँव शामिल थे। इस पदयात्रा में पूरे देश से 50 खोज यात्री शामिल हुए, जिनमें वैज्ञानिक, पत्रकार, छात्र, किसान, प्रोफेसर, नीति निर्धारक आदि थे। इन 50 यात्रियों ने प्रतिदिन 18 से 20 किलोमीटर की पदयात्रा की।
सृष्टि के संस्थापक प्रोफेसर अनिल गुप्ता ने बताया कि इन खोज यात्रियों ने राजस्थान के स्थानीय किसानों द्वारा किए गए नवाचारों को जानने-समझने के साथ-साथ खेती में आने वाली कठिनाइयों को भी समझने का प्रयास किया। महिलाओं के पास मौजूद परंपरागत ज्ञान और उनकी रचनात्मकता का सम्मान किया गया। छात्रों के लिए वनस्पति विविधता प्रतियोगिता और नवाचार विचार प्रतियोगिता के माध्यम से स्थानीय समस्याओं को पहचानने और दैनिक जीवन में आने वाली कठिनाइयों के समाधान खोजने की प्रेरणा दी गई। गांवों में शतायु माताओं, दादाओं, पशु चिकित्सकों, रचनात्मक कारीगरों और महिला समूहों के पास मौजूद खोजों को जानने और समझने के बाद उनका सम्मान भी किया गया।
अनिल गुप्ता ने आगे बताया कि इस दौरान नवाचारी शिक्षकों और जैविक खेती करने वाले किसानों का भी सम्मान किया गया। यहां 800 ग्राम वजन का सेब जैसा बेर उगाकर नई पहचान बनाने वाले किसान नंदूजी सोलंकी का भी सम्मान किया गया। इसके अलावा, मूंडवा गांव में 108 वर्ष की सरजू देवी ने ऊँचे स्वर में भजन गाकर खोज यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कुचेरा गांव में 14 और 16 वर्ष के युवा छात्र यश और नीरज द्वारा बनाए गए बोलने वाले रोबोट को देखकर सभी खोज यात्री आश्चर्यचकित रह गए।
चकधाणी गांव में गणपतलालजी ने खेतों में चूहों को भगाने के लिए चूहों को सिंदूर से रंगकर छोड़ देने की पद्धति बताई, जिससे चूहे अहिंसक तरीके से भाग जाते हैं। पूरी खोज यात्रा में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि हर गांव और हर घर में वर्षा जल संग्रहण के लिए भूमिगत टैंक बने हुए थे। इस क्षेत्र में भूमिगत टैंक जीवनरेखा के समान हैं, जो पूरे वर्ष घरेलू उपयोग और पीने के पानी का स्रोत हैं।